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हुमायूँ

बाबर के चार पुत्र थे -

हुमायूंकामरानअसकरीहिन्दाल
दिल्ली एवं आगराकाबुल एवं कांधारसंभलअलवर

हुमायूं का राज्याभिषेक आगरा में हुआ।

हुमायूं द्वारा लड़े गये युद्ध

1. कालिंजर पर आक्रमण(1531 ई.)

हुमायूं का पहला सैथ्नक अभियान बुन्देलखण्ड के कालिंजर के विरूद्ध था। कालिंजर का शासक प्रताप रूद्र देव था। यह अभियान असफल रहा।

2. दोहरिया का युद्ध(1532 ई.)

यह युद्ध हुमायूं एवं अफगान शासक महमूद लोदी के बीच हुआ। इसमें हुमायूं की जीत हुई।

3. चुनार पर घेरा(1532 ई.)

इस समय चुनार पर अफगान शासक शेर खां का अधिकार था। शेर खां ने हुमायूं की अधीनता स्वीकार कर ली।

4. बहादुर शाह से संघर्ष(1532-36ई.)

हुमायूं ने बहादुर शाह पर आक्रमण किया इसमें गुजरात शासक बहादुर शाह पराजित हुआ।

हुमायूं ने माण्डु एवं चम्पानेर किले को जीता।

5. चौसा का युद्ध(26 जून, 1539 ई.)

यह युद्ध अफगान शासक शेरखां(शेरशाह सूरी) एवं हुमायूं के बीच हुआ।

इस युद्ध में हुमायूं पराजित हुआ।

शेरखां ने शेर शाह उपाधि धारण की।

हुमायूं घोड़े सहित गंगा में कूद गयाा एवं निजाम नामक भिस्ती की सहायता से जान बचायी। हुमायूं ने इस उपकार के बदले भिस्ती को एक दिन का बादशाह बनाया था।

6. बिलग्राम का युद्ध(17 मई, 1540 ई.)

यह युद्ध शेरशाह सूरी एवं हुमायूं के बीच लड़ा गया। इसमें हुमायूं बुरी तरह पराजित हुआ।

इस युद्ध के बाद हुमायूं भारत छोड़कर सिंध भाग गया।

शेरशाह सूरी ने दिल्ली एवं आगरा पर अधिकार कर लिया एवं सूर वंश की स्थापना की।

निर्वासन काल में हुमायूं

बिलग्राम के युद्ध में पराजित होने के बाद प्रारंभ में हुमायु ने अमरकोट के राणा वीरसाल के यहां शरण ली।

हुमायूं ने 1541 ई. में हमीदा बानों बेगम से निकाह किया एवं अमरकोट में ही हमीदा बानो ने अकबर को जन्म दिया।

अमरकोट से हुमायूं ने ईरान के शाह के यहां शरण ली।

1545 ई. में हुमायूं के कंधार व काबुल पर अधिकार कर लिया।

हुमायूं ने 1555 ई. में ईरान के शाह तथा बैरम खां की मदद से पुनः सिंहासन प्राप्त किया।

सूर वंश(द्वितीय अफगान राज्य)

बिलग्राम के युद्ध में हुमायूं को हराकर शेर खां(शेरशाह सूरी) ने सूर वंश की स्थापना की।

शेरशाह सूरी

शेरशाह के बचपन का नाम फरीद था। बिहार के सूबेदार बहार खां लोहानी ने फरीद को शेर खां की उपाधि दी थी।

बहार खां(मुहम्मद शाह) की मृत्यु के बाद शेर खां ने उसकी पत्नि से विवाह कर लिया एवं बिहार का शासक बन बैठा।

शेर खां ने चौसा के युद्ध में हुमायूं को पराजित किया एवं शेरशाह की उपाधि धारण की।

बिलग्राम के युद्ध में हुमायूं को पराजित किया एवं दिल्ली सल्तनत पर अधिकार कर लिया। दिल्ली में द्वितीय अफगान राज्य की स्थापना की।

शेर शाह सूरी के विजय अभियान

1543 ई. में रायसीन पर आक्रमण किया एवं वहां के शासक पूरनमल की धोखे से हत्या कर दी। यह शेरशाह के चरित्र कर कलंक था। इस घटना के बाद शेरशाह के बेटे कुतुब खां ने आत्महत्या कर ली थी।

1544 ई. में शेरशाह ने मारवाड़ के शासक मालदेव पर आक्रमण किया। मालदेव मारा गया परन्तु मालदेव के राजपूत सरदार जैता एवं कुप्पा ने अपनी वीरता से अफगानी सेना के छक्के छुड़ा दिए। इस आक्रमण के लिए शेरशाह सूरी ने कहा ‘मुठ्ठी भर बाजरे के लिए लगभग हिन्दुस्तान का साम्राज्य खो चुका था।

1545 ई. में शेरशाह सूरी ने अपना अंतिम अभियान कलिंजर के विरूद्ध किया था। इस समय कलिंजर का शासक कीरत सिंह था। इसी अभियान में शेरशाह उक्का नामक आग्नेयास्त्र से गोला फेंक रहा था परन्तु गोला उसके पास रखे बारूद के ढ़ेर पर गर गया जिससे शेरशाह सूरी की मृत्यु हो गयी।

शेरशाह सूरी द्वारा किए गए सुधार

शेरशाह का प्रशासन अत्यंत केन्द्रीकृत था। मंत्री स्वयं निर्णय नहीं ले सकते थे।

शेरशाह ने अपने सम्पूर्ण साम्राज्य को 47 सरकारों में विभाजित किया था।

शेरशाह ने बंगाल सूबे को 19 सरकारों में विभाजित किया था।

  • शिकदार का पद - सैनिक अधिकारी था।
  • मुंसिफ-ए-मुंसिफान - यह एक न्यायिक अधिकारी था।

शेरशाह की लगान व्यवस्था मुख्य रूप से रैय्यतवादी थी जिसमें किसानों से प्रत्यक्ष सम्पर्क स्थापित किया गया था।

शेरशाह ने उत्पादन के आधार पर भूमि को तीन श्रेणियों में विभाजित किया था - अच्छी, मध्यम एवं खराब।

  • जरीबाना - यह भूमि सर्वेक्षण शुल्क था।
  • महासिलाना - यह कर संग्रह शुल्क था।

गांवों में कानून-व्यवस्था स्थापित करने का काम चौधरी एवं मुकद्दम नामक स्थानीय मुखिया करते थे।

शेरशाह सूरी ने सड़क निर्माण पर बहुत बल दिया। शेरशाह सूरी मार्ग जिसे वर्तमान में ग्राण्ड ट्रक रोड़(G. T. Road) कहते हैं। इसका निर्माण शेरशाह सूरी ने करवाया था।

शेरशाह सूरी ने चांदी का रूपया(180 ग्रेन) एवं तांबे का दाम(380 ग्रेन) नामक सिक्के चलाए थे।

शेरशाह ने रोहताश गढ़ नामक किला बनवाया था।

कानूनगो ने शेरशाह सूरी के लिए कहा है कि ‘वह बाहर से मुस्लिम अन्दर से हिन्दु था।

दिल्ली का अन्तिम हिन्दु शासक: हेमू

शेरशाह सूरी के उत्तराधिकारीयों में मुहम्मद आदिल शाह एक अयोग्य एवं दुराचारी शासक था। इसने हेमू को अपना प्रशासन का संपूर्ण भार सौंप दिया।

आदिल शाह ने चुनार को अपनी राजधानी बनाया तथा हेमू मुगलों को हिन्दुस्तान से बाहर निकालने के लिए नियुक्त किया। आदिल शाह के शासक बनते ही हेमू को प्रधानमंत्री बनाया गया।

हेमू ने अपने स्वामी के लिए 24 लड़ाइयां लड़ी जिसमें उसे 22 लड़ाइयों में सफलता मिली।

हेमू ने विक्रमादित्य की उपाधि धारण की। वह दिल्ली की गद्दी पर बैठने वाला अंतिम हिन्दु सम्राट था। इसका शासन बहुत अल्पकालिक था।

हुमायूं द्वारा पुनः राज्य की प्राप्ति

1445 ई. में हुमायूं ने काबुल तथा कांधार पर हमला कर कब्जा कर लिया।

फरवरी 1555 ई. में लाहौर पर अधिकार कर लिया था।

मच्छीवारा का युद्ध(15 मई, 1555)

यह सतलज नदी के किनारे पर हुमायूं एवं अफगान सरदार(नसीब खां एवं तातार खां) के बीच हुआ। इसमें हुमायूं की जीत हुई। अब मुगलों का अधिकार पंजाब पर हो गया।

सरहिन्द का युद्ध(22 जून, 1555)

यह युद्ध अफगान एवं मुगल सेना के बीच हुआ। अफगानों का नेतृत्व सिकन्दर सूर एवं मुगल सेना का नेतृत्व बैरम खां ने किया। अफगान सेना पराजित हुई।

सरहिन्द के युद्ध में विजय के बाद भारत के सिंहासन पर एक बार पुनः मुगलों का शासन स्थापित हो गया।

23 जुलाई, 1555 को हुमायूं पुन: दिल्ली के तख्त पर बैठा।

27 जनवरी, 1556 को दिल्ली के किले दीनपनाह के शेरमंडल नामक पुस्तकालय की सीढ़ी से गिरकर हुमायूँ की मृत्यु हो गयी। हुमायूँ को दिल्ली में ही दफनाया गया।

हुमायूं सप्ताह के सात दिन सात रंग के कपड़े पहनता था।

हुमायूं एकमात्र मुगल शासक था। जिसने अपना साम्राज्य भाइयों में बांटा था।

हुमायूँ ने दिल्ली में इंद्रप्रस्थ के खंडहरों पर दीन पनाह नगर बसाया।

हुमायूँ की मृत्यु पर ब्रिटिश लेखक स्टैनले लेन पूल ने कहा था, “वह जीवन भर ठोकर खाता रहा और अंत में ठोकर खा कर ही मर गया”।

हुमायूँ के मकबरे का निर्माण 1565ई. में हुमायूँ की विधवा बेगा बेगम(हाजी बेगम) ने शुरू करवाया। कहते हैं हुमायूं ने अपने निर्वासन के दौरान फारसी स्थापत्य कला के सिद्धांतो का ज्ञान प्राप्त किया था और शायद स्वयं ही इस मकबरे की योजना बनाई थी।

गुलबदन बेगम बाबर की बेटी थी। उसे अपने सौतेले भाई हुमायूं के जीवन चित्रण हुमायूं नामा की लेखक के रूप में जाना जाता है।

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