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राजस्थान का एकीकरण

राजस्थान के एकीकरण के समय कुल 19 रियासतें 3 ठिकाने- लावा(जयपुर), कुशलगढ़(बांसवाड़ा) व नीमराना(अलवर) तथा एक चीफशिफ अजमेर-मेरवाड़ा थे।

तथ्य

भारत के एकीकरण के समय कुल 562 रियासत थी। क्षेत्रफल में सबसे बड़ी रियासत हैदराबाद थी व क्षेत्रफल में सबसे छोटी रियासत बिलवारी(मध्यप्रदेश) थी।

राजस्थान का एकीकरण 7 चरणों में पुरा हुआ।इसके एकीकरण 8 वर्ष 7 महीनें 14 दिन का समय लगा। राजस्थान की सबसे प्राचिन रियासत मेवाड़(उदयपुर) थी।

मेवाड़ रियासत की स्थापना 565 ई. में गुहिल के द्वारा की गई।

राजस्थान की सबसे नवीन रियासत झालावाड है।झालावाड़ को कोटा से अलग करके रियासत का दर्जा दिया गया और इसकी राजधानी पाटन रखी गयी। झालावाड़ अंग्रेजों के समय में स्थापित एकमात्र रियासत थी।

एकीकरण से पुर्व राजस्थान में केन्द्र शासित प्रदेश- अजमेर- मेरवाडा

सबसे प्राचीन रियासत - उदयपुर/मेवाड़

स्बसे नवीन रियासत - झालावाड़

क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे बड़ी रियासत- जोधपुर(मारवाड)

क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे छोटी रियासत- शाहपुरा

जनसंख्या की दृष्टि से सबसे बड़ी रियासत- जयपुर

जनसंख्या की दृष्टि से सबसे छोटी रियासत- शाहपुरा

अंग्रेजों के साथ संधि करने वाली राजस्थान की प्रथम रियासत- करौली(15 नवंम्बर, 1817 में)

अंग्रेजों के साथ संधि करने वाली राजस्थान की द्वितीय रियासत- कोटा(दिसम्बंर, 1817 में)

अंग्र्रेजों के साथ संधि करने वाली राजस्थान की अन्तिम रियासत- सिरोही(सितंम्बर, 1823 में)

शिकार एक्ट घोसित करने वाली राजस्थान की प्रथम रियासत-टोंक(1901 में)

डाक टिकट व पोस्टकार्ड जारी करने वाली प्रथम रियासत- जयपुर(1904 में)

जयपुर में माधोसिंग द्वितीय के द्वारा डाक टिकट व पोस्टकार्ड जारी किये गये।

वन्य जीवों की सुरक्षा के लिए कानुन बनाने वाली प्रथम रियासत-जोधपुर(1910 में)

वन्य अधिनियम पारित करने वाली प्रथम रियासत- अलवर 1935 में

शिक्षा पर प्रतिबन्ध लगाने वाली प्रथम रियासत- डुंगरपुर

जनतांत्रिक व पूर्ण उत्तरदायी शासक की स्थापना करने वाली प्रथम रियासत- शाहपुरा

जनतांत्रिक व पूर्ण उत्तरदायी शासक की स्थापना न करने वाली रियासत-जैसलमेर

जैसलमेर रियासत को राजस्थान का अण्डमान कहा जाता है।यह सबसे पिछड़ी रियासत थी। इस रियासत ने 1942 में भारत छोड़ो आन्दोलन में भाग नहीं लिया था।

टोंक व जोधपुर रियासतें एकीकरण के समय पाकिस्तान में मिलना चाहती है।

अलवर, भरतपुर व धौलपुर रियासतें एकीकरण के समय भाषायी समानता के आधार पर उत्तरप्रदेश में मिलना चाहती थी।

भारत में केवल दो मुस्लिम रियासतें टोंक व पालनपुर(गुजरात) थी।

एकीकरण के समय एक शर्त रखी गयी थी कि जिस रियासत की जनसंख्या 10 लाख व वार्षिक आय एक करोड़ रूपये हो वो रियासतें चाहे तो रियासत चाहे तो स्वतंत्र रह सकती है। या किसी में मिल सकती है। उपर्युक्त शर्त को पुरा करने वाली राजस्थान की रियासतें- बीकानेर, जोधपुर, जयपुर,उदयपुर।

अलवर, भरतपुर, धौलपुर, डुंगरपुर, टोंक व जोधपुर ये रियासतें राजस्थान में नही मिलना चाहती थी। अलवर रियासत का सम्बंध महात्मा गांधी की हत्या से जुडा हुआ है महात्मा गांधी की हत्या के संदेह में अलवर के शासक तेजसिंह व दीवान एम.बी. खरे को दिल्ली में नजर बंद करके रखा था।अलवर रियासत ने भारत का प्रथम स्वतंत्रता दिवस नहीं मनाया।

बांसवाड़ा के शासक चन्द्रवीर सिंह ने एकीकरण विलय पत्र पर हस्ताक्षर करते समय कहा था कि 'में अपने डेथ वारन्ट पर हस्ताक्षर कर रहा हुँ।'

रियासती विभाग की स्थापना- जुलाई 1947 में की गई।

रियासती विभाग का अध्यक्ष- सरदार वल्लभ भाई पटेल

तथ्य

पटेल की तुलना जर्मनी के एकीकरण के सूत्रधार बिस्मार्क से की जाती है। ना बिस्मार्क ने कभी मूल्यों से समझौता किया और ना सरदार पटेल ने।

कहा जाता है कि 1928 में बारडोली सत्याग्रह के वक्त ही वहां के किसानों ने उन्हें ‘सरदार’ की उपाधि से सम्मानित किया।

वडोदरा के पास नर्मदा जिले में स्थित सरदार सरोवर के केवाड़िया कॉलोनी गांव में सरदार वल्लभभाई पटेल की 182 मीटर ऊंची मूर्ति(विश्व की सबसे ऊंची प्रतिमा- स्टैच्यू ऑफ यूनिटी) तैयार है।

रियासती विभाग का सदस्य सचिव- वी. पी. मेनन

अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद् का अध्यक्ष पण्डित जवाहर लाल नेहरू का बनाया गया।

एकीकरण के समय सर्वाधिक धरोहर राशि(पोते बाकि) जमा करवाने वाली रियासत बीकानेर थी।इसने 4 करोड़ 87 लाख की धरोहर राशि जमा करवाई।

एकीकरण के समय राजस्थान में कुल 3 ठिकाने थे।

ठिकानेशासक
नीमराणा(अलवर)राव राजेन्द्र सिंह
कुशलगढ़(बांसवाड़ा)राव हरेन्द्र सिंह
लावा(जयपुर)बंस प्रदीप सिंह

क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे बड़ा ठिकाना- कुशलगढ़(बांसवाडा)

क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे छोटा ठिकाना- लावा(जयपुर)

अजमेर -मेरवाड़ा की अलग से विघानसभा थी।जिसे धारा सभा के नाम से जाना जाता था।इसमें कुल 30 सदस्य थे।इसे 'B' श्रेणी का राज्य रखा था।

अजमेर-मेरवाड़ा का प्रथम व एकमात्र मुख्यमंत्री हरिभाऊ उपाध्याय था।

राजस्थान का एकीकरण कुल सात चरणों में 17/18 मार्च, 1948 से प्रारम्भ होकर 1 नवम्बर, 1956 को सम्पन्न हुआ, इसमें 8 वर्ष, 7 माह एवं 14 दिन का समय लगा।

राजस्थान का एकीकरण

प्रथम चरण - मतस्य संघ 17/18 मार्च, 1948

मतस्य संघ- 4 रियासते+1 ठिकाना

अलवर, भरतपुर, धौलपुर, करौली + नीमराणा(अलवर)ठिकाना

सिफारिश- के. एम. मुन्शी की सिफारिश पर प्रथम चरण का नाम मतस्य संघ रखा गया।

राजधानी- अलवर

राजप्रमुख- उदयमान सिंग(धौलपुर)

उपराज प्रमुख- गणेशपाल देव

प्रधानमंत्री- शोभाराम कुमावत

उपप्रधानमंत्री- गोपीलाल यादव + जुगल किशोर चतुर्वेदी

जुगल किशोर चतुर्वेदी को दुसरा जवाहरलाल नेहरू के उपनाम से जाना जाता है।

उद्घाटन कत्र्ता- एन. वी. गाॅडविल(नरहरि विष्णु गाॅडविल)

दुसरा चरण- पूर्व राजस्थान 25 मार्च 1948

पूर्व राजस्थान- 9 रियासतें + 1 ठिकाना

डुंगरपुर, बांसवाडा, प्रतापगढ़, शाहपुरा, किशनगढ़, टोंक, बुंदी, कोटा, झालावाड़ + कुशलगढ़(बांसवाड़ा)ठिकाना।

राजधानी- कोटा

राजप्रमुख- भीमसिंह(कोटा)

उपराज प्रमुख- महारावल लक्ष्मणसिंग

प्रधानमंत्री- गोकुल लाल असावा(शाहपुरा)

उद्घाटन कत्र्ता- एन. वी. गाॅडविल

तीसरा चरण- संयुक्त राजस्थान 18 अप्रैल, 1948

संयुक्त राजस्थान- पूर्व राजस्थान + उदयपुर -10 रियासतें + 1 ठिकाना

राजधानी- उदयपुर

राजप्रमुख- भोपालसिंग(उदयपुर)

भोपालसिंग एकमात्र राजा एकीकरण के समय अपाहिज व्यक्ति था।

उपराजप्रमुख- भीमसिंह

प्रधानमंत्री- माणिक्यलाल वर्मा

पं. जवाहरलाल नेहरू की सिफारिश पर बनाया।

उद्घाटन कर्ता- पं. जवाहरलाल नेहरू

चैथा चरण- वृहद राजस्थान 30 मार्च, 1949

वृहद राजस्थान- संयुक्त राजस्थान + जयपुर + जोधपुर + जैसलमेर + बीकानेर + लावा ठिकाना - 14 रियासत + 2 ठिकाने

राजधानी- जयपुर

श्री पी. सत्यनारायण राव समिती की सिफारिश पर।

महाराज प्रमुख- भोपाल सिंह

राजप्रमुख- मान सिंह द्वितीय(जयपुर)

उपराजप्रमुख- भीमसिंग

प्रधानमंत्री- हीरालाल शास्त्री

इस चरण में 5 विभाग स्थापित किये गये जो निम्न है।

1 शिक्षा का विभाग- बीकानेर

2 न्याय का विभाग- जोधपुर

3 वन विभाग- कोटा

4 कृषि विभाग- भरतपुर

5 खनिज विभाग- उदयपुर

उद्घाटन कत्र्ता- सरदार वल्लभ भाई पटेल

पांचवा चरण- संयुक्त वृहद् राजस्थान 15 मई, 1949

संयुक्त वृहद् राजस्थान - वृहद राजस्थान + सत्स्य संघ

सिफारिश- शंकरादेव समिति की सिफारिश पर मत्स्य संघ को वृहद राजस्थान में मिलाया गया।

राजधानी- जयपुर

महाराज प्रमुख- भोपाल सिंह

राजप्रमुख- मान सिंह द्वितीय(जयपुर)

प्रधानमंत्री- हीरालाल शास्त्री

उद्घाटन कत्र्ता- सरदार वल्लभभाई पटेल

छठा चरण- राजस्थान संघ 26 जनवरी, 1950

राजस्थान संघ- वृहतर राजस्थान + सिरोेही - आबु दिलवाड़ा

राजधानी- जयपुर

महाराज प्रमुख- भोपाल सिंह

राजप्रमुख- मानसिंह द्वितीय

प्रधानमंत्री/मुख्यमंत्री- हीरालाल शास्त्री

26 जनवरी,1950 को राजपुताना का नाम बदलकर राजस्थान रख दिया।

26 जनवरी, 1950 को राजस्थान को 'B' या 'ख' श्रेणी का राज्य बनाया गया।

सतंवा चरण- वर्तमान राजस्थान 1 नवम्बर, 1956

वर्तमान राजस्थान- राजस्थान संघ + आबु दिलवाड़ा + अजमेर मेरवाड़ा + सुनेल टपा - सिरोज क्षेत्र

मध्यप्रदेश के मंदसौर जिले की मानपुर तहसील का सुनेल टपा राजस्थान के कोटा जिले में मिला दिया तथा झालावाड़ का सिरोज क्षेत्र मध्यप्रदेश में मिला दिया गया।

सिफारिश- राज्य पुर्नगठन आयोग अध्यक्ष- फैजल अली

राज्य पुर्नगठन आयोग का गठन 1952 में किया गया और इसने अपनी रिपोर्ट 1956 में दी इसकी सिफारिश पर अजमेर-मेरवाड़ा आबु दिलवाड़ा तथा सुनेल टपा को राजस्थान में मिला दिया गया।इस आयोग में राजस्थान से एकमात्र सदस्य हद्यनाथ किजरन था।

राज्यपाल- गुरूमुख निहाल सिंह

मुख्यमंत्री- मोहनलाल सुखाडिया

तथ्य

राजस्थान के एक मात्र मनोनीत व निर्वाचित मुख्यमंत्री - जयनारायन व्यास

क्षेत्रीय परिषदें

सभी राज्‍यों के बीच और केंद्र एवं राज्‍यों के बीच मिलकर काम करने की संस्कृति विकसित करने के उद्देश्‍य से राज्‍य पुनर्गठन अधिनियम (States Reorganisation Act), 1956 के अंतर्गत क्षेत्रीय परिषदों का गठन किया गया था।

क्षेत्रीय परिषदों को यह अधिकार दिया गया कि वे आर्थिक और सामाजिक योजना के क्षेत्र में आपसी हित से जुड़े किसी भी मसले पर विचार-विमर्श करें और सिफारिशें दें।

क्षेत्रीय परिषदें आर्थिक और सामाजिक आयोजना, भाषायी अल्‍पसंख्‍यकों, अंतर्राज्‍यीय परिवहन जैसे साझा हित के मुद्दों के बारे में केंद्र और राज्‍य सरकारों को सलाह दे सकती हैं।

पाँच क्षेत्रीय परिषदें

राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956 के भाग-।।। के तहत पाँच क्षेत्रीय परिषदें स्थापित की गई। पूर्वोत्तर राज्य अर्थात् (i) असम (ii) अरुणाचल प्रदेश (iii) मणिपुर (iv) त्रिपुरा (v) मिज़ोरम (vi) मेघालय और (vii) नगालैंड को आंचलिक परिषदों में शामिल नहीं किया गया और उनकी विशेष समस्याओं को पूर्वोत्तर परिषद अधिनियम (North Eastern Council Act), 1971 के तहत वर्ष 1972 में गठित पूर्वोत्तर परिषद द्वारा हल किया जाता है। "सिक्किम राज्य को दिनांक 23 दिसंबर, 2002 में अधिसूचित पूर्वोत्तर परिषद (संशोधन) अधिनियम, 2002 के तहत पूर्वोत्तर परिषद में भी शामिल किया गया है। इसके परिणामस्वरूप सिक्किम को पूर्वी आंचलिक परिषद के सदस्य के रूप में हटाए जाने के लिये गृह मंत्रालय द्वारा कार्रवाई शुरु की गई है।" इन क्षेत्रीय परिषदों का वर्तमान गठन निम्नवत है:

  • उत्तरी क्षेत्रीय परिषद: इसमें हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, राजस्थान राज्य, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली और संघ राज्य क्षेत्र चंडीगढ़, जम्मू और कश्मीर तथा लद्दाख शामिल हैं।
  • मध्य क्षेत्रीय परिषद: इसमें छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश राज्य शामिल हैं।
  • पूर्वी क्षेत्रीय परिषद: इसमें बिहार, झारखंड, उड़ीसा और पश्चिम बंगाल राज्य शामिल हैं।
  • पश्चिमी क्षेत्रीय परिषद: इसमें गोवा, गुजरात, महाराष्ट्र राज्य और संघ राज्य क्षेत्र दमन-दीव और दादरा और नगर हवेली शामिल है।
  • दक्षिणी क्षेत्रीय परिषद: इसमें आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, राज्य और संघ राज्य क्षेत्र पुद्दुचेरी शामिल हैं।

राजस्थान को प्राचीन काल में राजपूताना के नाम से जाना जाता था। राजस्थान पर प्राचीन काल में राजपूत जाति का शासन था।इस कारण इसे राजपूताना क्षेत्र के नाम से जाना जाता है।

जाॅर्ज थाॅमस 1758 में राजस्थान के शेखावटी क्षेत्र में आया जार्ज थाॅमस की मृत्यु बीकानेर में हुई। यह मूलतः आयरलैण्ड का निवासी था। राजस्थान के लिए सर्वप्रथम राजपूताना शब्द का प्रयोग 1800 ई. में जार्ज थाॅमस के द्वारा किया गया।

1805 ई. में विलियम फ्रेंकलिन ने अपने ग्रंथ"मिल्ट्री मेमायर्स आॅफ मिस्टर जार्ज थाॅमस" इस बात का उल्लेख किया कि जाॅर्ज थामस ही सम्भवत प्रथम व्यक्ति था जिसे इस भू-भाग के जिए राजपुताना शब्द का प्रयोग किया। "मिल्ट्री मेमायर्स आॅफ मिस्टर जाॅर्ज थाॅमस " का विमोचन लार्ड वेलेजली द्वारा किया गया।

राजस्थान के लिए सर्वप्रथम रजवाड़ा,रायथान ,राजस्थान शब्द का प्रयोग 1829 ई. में कर्नल जेम्स टाॅड के द्वारा अपने ग्रंथ "द एनाल्स एण्ड एन्टीक्वीटीज आॅफ राजस्थान" में किया गया। कर्नल जेम्स टाॅड ने"द एनाल्स एण्ड एन्टीक्वीटीज आॅफ राजस्थान" का प्रकाशन लंदन मेें किया । और इसका प्रकाशक जेम्स क्रुक था।

कर्नल जेम्स टाॅड की पुस्तक 'द एनाल्स एण्ड एन्टीक्वीटीज आॅफ राजस्थान' का दुसरा नाम 'दी सैन्ट्रल एण्ड वेस्टर्न राजपुत स्टेटस आॅफ इण्डिया' दिया।

जेम्स टाॅड ने अपनी एक और पुस्तक 'ट्रेवल इन वेस्टर्न इण्डिया' में राजस्थान के पर्यटन के बारे में वर्णन किया। पुरानी बहियों में कर्नल जेम्स टाॅड ने राजस्थान के लिए रजवाड़ा/रायथान शब्द का प्रयोग किया है।

रायथान का शाब्दिक अर्थ है- शासकों का निवास स्थल।

कर्नल जेम्स टाॅड मूलतः वेल्स(यू. के.) का निवासी था।

कर्नल टाॅड राजस्थान में उदयपुर और जोधपुर का पाॅलिटिक्ल एजेन्ट था। कर्नल जेम्स टाॅड को राजस्थान के इतिहास का पिता/पितामह कहा जाता है। कर्नल जेम्स टाॅड को घोडे वाले बाबा के उपनाम से भी जाना जाता है।

कर्नल जेम्स टाॅड ने इग्लैण्ड जाते समय मानमोरी लेख जो समुन्द्र में फेंक दिया। वह मानमोरी लेख चित्तौड़ के मानसरोवर झील के तट पर मिला जिस पर मेवाड़ के शासकों का वर्णन लिखा हुआ था।

ऋगवेद में राजस्थान के लिए ब्रहावर्त का प्रयोग किया गया है।रामायण में राजस्थान के लिए मरूकान्ताय शब्द का प्रयोग किया है।

बसन्तगढ शिलालेख(सिरोही) में राजस्थानादित्या,मुंहणोत नैणसी ने अपने ग्रथ 'नैणसी री ख्यात' में राजस्थान के बारे में वर्णन किया है।

वीरमान ने अपने ग्रंथ 'राजरूपक' मेें भी राजस्थान के बारे में वर्णन किया है। चित्तौड़गढ़ के खण्ड शिलालेखों में राजस्थानीय शब्द का प्रयोग हुआ।

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