राजस्थान की प्राचीन सभ्यताएँ
प्रश्न 11 निम्न में से किस सभ्यता को भारत में सभी ताम्रयुगीन सभ्यताओं की जननी माना जाता है -
(अ) आहड़
(ब) गिलूण्ड
(स) कालीबंगा
(द) गणेश्वर
व्याख्या :
गणेश्वर का टीला, नीम का थाना में कांतली नदी के उद्गम स्थल पर अवस्थित है। गणेश्वर में रत्नचंद्र अग्रवाल ने 1977 में खुदाई कर इस सभ्यता पर प्रकाश डाला। इस क्षेत्र का विस्तृत उत्खनन कार्य 1978-89 के बीच विजय कुमार ने किया। डी.पी. अग्रवाल ने रेडियो कार्बन विधि एवं तुलनात्मक अध्ययन के आधार पर इस स्थल की तिथि 2800 ईसा पूर्व निर्धारित की है अर्थात् गणेश्वर सभ्यता पूर्व-हड़प्पा कालीन सभ्यता है। ताम्रयुगीन सांस्कृतिक केन्द्रों में से प्राप्त तिथियों में यह प्राचीनतम् है। इस प्रकार गणेश्वर संस्कृति को निर्विवाद रूप से ‘भारत में ताम्रयुगीन सभ्यताओं की जननी’ माना जा सकता है।
प्रश्न 12 निम्नलिखित में से किस पुरास्थल के निवासी वस्त्र - बुनाई की तकनीक से परिचित थे -
(अ) बालाथल
(ब) गणेश्वर
(स) बैराठ
(द) कालीबंगा
व्याख्या :
बैराठ के निवासी वस्त्र - बुनाई की तकनीक से परिचित थे।
प्रश्न 13 मध्य पाषाणकालीन उपकरण चित्तौड़ में _____ नदी के किनारे और विराटनगर से मिले हैं।
(अ) नीलपाड़ा
(ब) एल्ना
(स) अश्वी
(द) बेराच
व्याख्या :
पश्चिम राजस्थान में लूनी और उसकी सहायक नदियों, चित्तौड़ की बेड़च नदी घाटी और विराटनगर से मध्य पाषाणकालीन उपकरण प्राप्त हुए हैं।
प्रश्न 14 आहड़ को ताम्रवती नाम से भी जाना जाता था क्योंकि -
(अ) जली हुई ईंट का निर्माण पाया गया।
(ब) अर्थव्यवस्था शिकार और पशुपालन पर आधारित थी।
(स) बड़ी संख्या में ताँबे के औज़ार और उपकरण मिले हैं।
(द) घर बनाने के लिए धूप में पकी ईंटों का उपयोग किया जाता था।
व्याख्या :
उदयपुर से तीन किलोमीटर दूर 500 मीटर लम्बे धूलकोट के नीचे आहड़ का पुराना कस्बा दवा हुआ है जहाँ से ताम्रयुगीन सभ्यता प्राप्त हुई है। यह सभ्यता बनास नदी पर स्थित है। ताम्र सभ्यता के रूप में प्रसिद्ध यह सभ्यता आयड़/बेड़च नदी के किनारे मौजूद थी। प्राचीन शिलालेखों में आहड़ का पुराना नाम ‘ताम्रवती’ अंकित है। यहां से बड़ी संख्या में ताँबे के औज़ार और उपकरण मिले हैं। तांबा गलाने की भट्टी मिली है।
प्रश्न 15 आहड़ में खुदाई के बाद एक 4000 साल पुरानी ताम्रपाषाणयुगीन संस्कृति की खोज की गई थी, जिसे _____ नामक एक टीले के नीचे दबा दिया गया था।
(अ) पानी का टीला
(ब) अहरवाल
(स) रामस्तूप
(द) धूलकोट
व्याख्या :
उदयपुर से तीन किलोमीटर दूर 500 मीटर लम्बे धूलकोट के नीचे आहड़ का पुराना कस्बा दवा हुआ है जहाँ से ताम्रयुगीन सभ्यता प्राप्त हुई है। यह सभ्यता बनास नदी पर स्थित है। ताम्र सभ्यता के रूप में प्रसिद्ध यह सभ्यता आयड़/बेड़च नदी के किनारे मौजूद थी। प्राचीन शिलालेखों में आहड़ का पुराना नाम ‘ताम्रवती’ अंकित है। दसवीं व ग्याहरवीं शताब्दी में इसे ‘आघाटपुर’ अथवा ‘आघट दुर्ग’ के नाम से जाना जाता था। इसे ‘धूलकोट’ भी कहा जाता है।
प्रश्न 16 नीम का थाना में कांतली नदी के उद्गम पर खोजा गया ताम्र संस्कृति का महत्त्वपूर्ण स्थल कौन सा है -
(अ) गिलुंड
(ब) गणेश्वर
(स) कालीबंगा
(द) आहड़
व्याख्या :
गणेश्वर का टीला, नीम का थाना में कांतली नदी के उद्गम स्थल पर अवस्थित है। गणेश्वर में रत्नचंद्र अग्रवाल ने 1977 में खुदाई कर इस सभ्यता पर प्रकाश डाला। इस क्षेत्र का विस्तृत उत्खनन कार्य 1978-89 के बीच विजय कुमार ने किया।
प्रश्न 17 1870 में, _____ ने बूँदी में जयपुर और इंद्रगढ़ से एक पुरापाषाण हाथ - कुल्हाड़ी (hand-axe) की खोज की।
(अ) वी. एन. मिश्रा
(ब) आर. सी. अग्रवाल
(स) ए. जी. जॉन्स
(द) सी. ए. हैकेट
व्याख्या :
सन् 1870 में सी.ए. हैकट ने ‘हैण्डएक्स’ ‘एश्यूलियन’ व ‘क्लीवर’ जयपुर एवं इन्दरगढ़ से खोज निकाले थे, जो भारतीय संग्रहालय कलकत्ता में उपलब्ध हैं। राजस्थान में पुरातात्विक सर्वेक्षण कार्य सर्वप्रथम 1871 ई. में प्रारम्भ करने का श्रेय ए.सी.एल. कार्लाइल को दिया जाता है।
प्रश्न 18 निम्नलिखित पुरातत्त्वविदों में से किसने बैराठ का उत्खनन किया -
(अ) वी. एन. मिश्र
(ब) के. एन. पुरी
(स) डी. आर. साहनी
(द) एच.डी. सांकलिया
व्याख्या :
प्राचीन मत्स्य जनपद की राजधानी विराटनगर (वर्तमान बैराठ) में ‘बीजक की पहाड़ी’, ‘भीमजी की डूँगरी’ मोती डूंगरी तथा ‘महादेवजी की डूँगरी’ आदि स्थानों पर उत्खनन कार्य दयाराम साहनी द्वारा 1936-37 में तथा पुनः 1962-63 में पुरातत्वविद् नीलरत्न बनर्जी तथा कैलाशनाथ दीक्षित द्वारा किया गया।
प्रश्न 19 निम्न में से कौन सा पुरावशेष कालीबंगा से सम्बन्धित नहीं है -
(अ) दुर्गीकरण
(ब) शैल चित्र
(स) अग्निवेदी
(द) मृद्भांड
व्याख्या :
शैल चित्र कालीबंगा से सम्बन्धित नहीं है।
प्रश्न 20 प्रागैतिहासिक स्थल, जहाँ से भारी मात्रा में ताम्र उपकरण प्राप्त हुए हैं :
(अ) बैराठ
(ब) कालीबंगा
(स) गणेश्वर
(द) तिलवाड़ा
व्याख्या :
गणेश्वर का टीला, नीम का थाना में कांतली नदी के उद्गम स्थल पर अवस्थित है। गणेश्वर में रत्नचंद्र अग्रवाल ने 1977 में खुदाई कर इस सभ्यता पर प्रकाश डाला। यहां से शुद्ध तांबे निर्मित तीर, भाले, तलवार, बर्तन, आभुषण, सुईयां मिले हैं। यहां से तांबे का निर्यात भी किया जाता था। सिंधु घाटी के लोगों को तांबे की आपूर्ति यहीं से होती थी।
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