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राजस्थान की सिंचाई परियोजनाएँ

परिभाषा

वर्षा के अभाव में भूमि को कृत्रिम तरीके से जल पीलाने की क्रिया को सिंचाई करना कहा जाता है। सिंचाई आधारभूत संरचना का अंग है।

योजनाबद्ध विकास के 60 वर्षो के बाद भी राजस्थान आधारभूत संरचना की दृष्टि से भारत के अन्य राज्यों के मुकाबले पिछड़ा हुआ है।

राज्य में कृषि योग्य भूमि का 2/3 भाग वर्षा पर निर्भर करता है।

शुष्क खेती

वर्षा आधारित क्षेत्रों में भूमि की नमी को संरक्षित रखकर की जाने वाली खेती को शुष्क खेती कहते हैं। भारत में नहरों की कुल लम्बाई विश्व में सबसे अधिक है। सिंचित क्षेत्र भी सबसे अधिक है। परन्तु हमारी आवश्यकताओं से कम है।

राजस्थान के कुल सिचित क्षेत्र का सबसे अधिक भाग श्री गंगानगर एवं सबसे कम भाग राजसमंद जिले में मिलता है। कुल कृषि क्षेत्र के सर्वाधिक भाग पर सिंचाई श्रीगंगानगर जिले में तथा सबसे कम चूरू जिले में मिलता है। राजस्थान कृषि प्रधान राज्य है। यहां के अधिकांश लोग जीवन - स्तर के लिए कृषि पर निर्भर है। कृषि विकास सिंचाई पर निर्भर करता है। राजस्थान के पश्चिमी भाग में मरूस्थल है। मानसून की अनिश्चितता के कारण ‘ कृषि मानसून का जुआ‘ जैसी बात कई बार चरितार्थ होती है।

सिंचाई के साधन

अप्रैल 1978 से सिंचाई के साधनों की परिभाषा निम्न प्रकार है।

1. लघु सिंचाई का साधन - वह साधन जिससे 2000 हैक्टेयर तक सिंचाई सुविधा उपलब्ध होती है।

2. मध्यम सिंचाई का साधन - वह साधन जिसमें 2000 हैक्टेयर से अधिक किन्तु 10000 हैक्टेयर से कम सिंचाई सुविधा उपलब्ध होती है।

3. वृहत सिंचाई का साधन - वह साधन जिससे 10,000 हैक्टेयर से अधिक सिंचाई सुविधा उपलब्ध होती है।

राजस्थान में सिंचाई के प्रमुख साधन

1. कुए एवम् नलकूप(ट्यूब्वैल)

ये राजस्थान में सिंचाई के प्रमुख साधन है। कुल सिंचित भुमि का लगभग 66 प्रतिशत भाग कुंए एवं नलकूप से सिंचित होता है।

कुए एवम् नलकूप से सर्वाधिक सिंचाई जयपुर में की जाती है। द्वितीय स्थान अलवर का है। जैसलमेर जिले में चंदन नलकूप मिठे पानी के लिए ‘थार का घड़ा‘ कहलाता है।

2. नहरे

राजस्थान में नहरों से कुल सिंचित क्षेत्र का लगभग 33 प्रतिशत भाग सिंचित होता है। नहरों से सर्वाधिक सिंचाई श्री गंगानगर में होती है।

3. तालाब

तालाबों से सिंचाई कुल सिंचित क्षेत्र के 0.6 प्रतिशत भाग में होती है। तालाबों से सर्वाधिक सिंचाई भीलवाड़ा में दुसरा स्थान उदयपुर का है। राजस्थान के दक्षिणाी एवं दक्षिणी पूर्वी भाग में तालाबों से सर्वाधिक सिंचाई की जाती है।

4. अन्य साधन

अन्य साधनों में नदी नालों को सिंचाई के लिए प्रयुक्त किया जाता है। इस साधन से कुल सिंचित क्षेत्र के 0.3 भाग में सिंचाई की जाती है।

राजस्थान में प्रमुख बहुउद्देश्य परियोजनाएं

पं. जवाहरलाल नेहरू ने बहुउद्देश्य परियोजनओं को ‘आधुनिक भारत के मन्दिर‘ कहा है।

1. चम्बल नदी घाटी परियोजना

चम्बल परियोजना का कार्य 1952 -54 में प्रारम्भ हुआ। यह राजस्थान व मध्यप्रदेश की संयुक्त परियोजना है। इसमें दानों राज्यों की हिस्सेदारी 50-50 प्रतिशत है।

क. गांधीसागर बांध

यह बांध 1960 में मध्यप्रदेश की भानुपुरा तहसील में बनाया गया है। यह बांध चैरासीगढ़ में 8 कि.मी. पहले एक घाटी में बना हुआ है। इससे 2 नहरें निकाली गई है।

बाईं नहर - बुंदी तक जाकर मेेज नदी में मिलती है।

दांयी नहर - पार्वत नदी को पार करके मध्यप्रदेश में चली जाती है यहां पर गांधी सागर विधुत स्टेशन भी है।

ख. राणा - प्रताप सागर बांध

यह बांध गांधी सागर बांध से 48 कि.मी. आगे चित्तौड़गढ़ में चुलिया जल प्रपात के समीप रावतभाटा नामक स्थान पर 1970 में बनाया गया है।

ग. जवाहर सागर बांध

इसे कोटा बांध भी कहते हैं, यह राणा प्रताप सागर बांध से 38 कि.मी. आगे कोटा के बोरावास गांव में बना हुआ है। यहां एक विधुत शक्तिा ग्रह भी बनाया गया है।

घ. कोटा बैराज

यह कोटा शहर के पास बना हुआ है। इसमें से दो नहरें निकलती है।

दायीं नहर - पार्वती व परवन नदी को पार करके मध्यप्रदेश में चली जाती है।

बायी नहर - कोटा, बुंदी, टोंक, सवाई माधोपुर, करौली मं जलापूर्ति करती है।

2. भाखड़ा नांगल परियोजना

भाखड़ा नांगल परियोजना भारत की सबसे बड़ी नदी घाटी परियाजना है। पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश की संयुक्त परियोजना है। इसमें राजस्थान का हिस्सा 15.2 प्रतिशत है। हिमाचल प्रदेश का हिस्सा केवल जल विधुत के उत्पादन में ही है। सर्वप्रथम पंजाब के गर्वनर लुईस डैन ने सतलज नदी पर बांध बनाने का विचार प्रकट किया। इस बांध का निर्माण 1946 में प्रारम्भ हुआ एवं 1962 को इसे राष्ट्र को समर्पित किया गया। यह भारत का सबसे ऊंचा बांध है। भाखड़ा बांध के जलाशय का नाम गोबिन्द सागर है। यह 518 मीटर लम्बा 9.1 मीटर चौड़ा और 220 मीटर ऊंचा है।

इस परियोजना के अन्तर्गत

क. भाखड़ा बांध

इसका निर्माण पंजाब के होशियारपुर जिले में सतलज नदी पर भाखड़ा नामक स्थाप पर किया गया है। इसका जलाशय गोविन्द सागर है। इस बांध को देखकर पं. जवाहरलाल नेहरू ने इसे चमत्कारिक विराट वस्तु की संज्ञा दी और बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजनाओं को आधुनिक भारत का मन्दिर कहा है।

ख. नांगल बांध

यह बांध भाखड़ा से 12 कि.मी. पहले एक घाटी में बना है इससे 64 कि.मी. लम्बी नहर निकाली गई है जो अन्य नहरों को जलापूर्ति करती है।

ग. भाखड़ा मुख्य नहर

यह पंजाब के रोपड़ से निकलती है यह हरियाणा के हिसार के लोहाणा कस्बे तक विस्तारित है। इसकी कुल लम्बाई 175 कि.मी. है।

इसके अलावा इस परियोजना में सरहिन्द नहर, सिरसा नहर, नरवाणा नहर, बिस्त दो आब नहर निकाली गई है। इस परियोजना से राजस्थान के श्री गंगानगर व हनुमानगढ़ चुरू जिलों को जल व विधुत एवं श्री गंगानगर, हनुमानगढ़, चुरू, झुझुनू, सीकर बीकानेर को विधुत की आपूर्ति होती है।

3. व्यास परियोजना

यह पंजाब, राजस्थान, हरियाणा में है। इस परियोजना के प्रथम चरण में 1 बांध, व्यास लिंक का निर्माण और एक विधुत ग्रह का निर्माण किया गया है। द्वितीय चरण में व्यास नदी पर पौंग बांध बनाया गया। इससे IGNP में नियमित जलापूर्ति रखने में मदद मिलती है।

रावी - व्यास जल विवाद

जल के बंटवारे के लिए 1953 में राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, जम्मु - कश्मीर, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश राज्यों के बीच एक समझौता हुआ इसमें सभी राज्यों के लिए अलग- अलग पानी की मात्रा निर्धारित की गई लेकिन इसके बाद भी यह विवाद थमा नहीं तब सन् 1985 में राजीव गांधी लौंगवाला समझौते के अन्तर्गत न्यायमूर्ति इराडी की अध्यक्षता में इराडी आयोग बनाया गया था। इस आयोग ने राजस्थान के लिए 86 लाख एकड़ घन फीट जल की मात्रा तय की है।

4. माही - बजाज सागर परियोजना

यह राजस्थान एवं गुजरात की संयुक्त परियोजना है। 1966 में हुए समझौते के अनुसार राजस्थान का हिस्सा 45 प्रतिशत व गुजरात का हिस्सा 55 प्रतिशत है। इस परियोजना में गुजरात के पंच महल जिले में माही नदी पर कड़ाना बांध का निर्माण किया गया है। इसी परियोजना के अंतर्गत बांसवाड़ा के बोरखेड़ा गांव में माही बजाज सागर बांध बना हुआ है। इसके अलावा यहां 2 नहरें, 2 विधुत ग्रह, 2 लघु विधुत ग्रह व 1 कागदी पिक अप बांध बना हुआ है। 1983 में इन्दिरा गांधी ने जल प्रवाहित किया। इस परियोजना से डुंगरपुर व बांसवाड़ा जिलों की कुछ तहसीलों को जलापूर्ति होती है।

वृहत परियोजनाएं

1. इन्दिरा गांधी नहर परियोजना(IGNP)

यह परियोजना पूर्ण होने पर विश्व की सबसे बड़ी परियोजना होगी इसे प्रदेश की जीवन रेखा/मरूगंगा भी कहा जाता है। पहले इसका नाम राजस्थान नहर था। 2 नवम्बर 1984 को इसका नाम इन्दिरा गांधी नहर परियोजना कर दिया गया है। बीकानेर के इंजीनियर कंवर सैन ने 1948 में भारत सरकार के समक्ष एक प्रतिवेदन पेश किया जिसका विषय ‘ बीकानेर राज्य में पानी की आवश्यकता‘ था। IGNP का मुख्यालय(बोर्ड) जयपुर में है।

इस नहर का निर्माण का मुख्य उद्द्देश्य रावी व्यास नदियों के जल से राजस्थान को आवंटित 86 लाख एकड़ घन फीट जल को उपयोग में लेना है। नहर निर्माण के लिए सबसे पहले फिरोजपुर में सतलज, व्यास नदियों के संगम पर 1952 में हरिकै बैराज का निर्माण किया गया। हरिकै बैराज से बाड़मेर के गडरा रोड़ तक नहर बनाने का लक्ष्य रखा गया। जिससे श्री गंगानगर, बीकानेर, जैसलमेर व बाड़मेर को जलापूर्ति हो सके।

नहर निर्माण कार्य का श्री गणेश तात्कालिक ग्रहमंत्री श्री गोविन्द वल्लभ पंत ने 31 मार्च 1958 को किया । 11 अक्टुबर 1961 को इससे सिंचाई प्रारम्भ हो गई, जब तात्कालिन उपराष्ट्रपति डा. राधाकृष्णनन ने नहर की नौरंगदेसर वितरिका में जल प्रवाहित किया था।

इस नहर का उद्गम पंजाब में फिरोजपुर के निकट सतलज-व्यास नदियों के संगम पर बने हरिके बैराज से है। IGNP के दो भाग हैं। प्रथम भाग राजस्थान फीडर कहलाता है इसकी लम्बाई 204 कि.मी.(169 कि.मी. पंजाब व हरियाणा + 35 कि.मी. राजस्थान) है। जो हरिकै बैराज से हनुमानगढ़ के मसीतावाली हैड तक विस्तारित है। नहर के इस भाग में जल का दोहन नहीं होता है।

IGNP का दुसरा भाग मुख्य नहर है। इसकी लम्बाई 445 किमी. है। यह मसीतावाली से जैसलमेर के मोहनगढ़ कस्बे तक विस्तारित है। इस प्रकार IGNP की कुल लम्बाई 649 किमी. है। इसकी वितरिकाओं की लम्बाई 9060 किमी. है। IGNP के निर्माण के प्रथम चरण में राजस्थान फीडर सूरतगढ़, अनुपगढ़, पुगल शाखा का निर्माण हुआ है। इसके साथ-साथ 3075 किमी. लम्बी वितरक नहरों का निर्माण हुआ है।

राजस्थान फीडर का निर्माण कार्य सन् 1975 में पूरा हुआ। नहर निर्माण के द्वितीय चरण में 256 किमी. लम्बी मुख्य नहर और 5112 किमी. लम्बी वितरक प्रणाली का लक्ष्य रखा गया है। नहर का द्वितीय चरण बीकानेर के पूगल क्षेत्र के सतासर गांव से प्रारम्भ हुआ था। जैसलमेर के मोहनगढ़ कस्बे में द्वितीय चरण पूरा हुआ है। इसलिए मोहनगढ़ कस्बे को IGNP का ZERO POINT कहते हैं।

मोहनगढ़ कस्बे से इसके सिरे से लीलवा व दीघा दो उपशाखाऐं निकाली गयी है। द्वितीय चरण का कार्य 1972-73 में पुरा हुआ है। 256 किमी. लम्बी मुख्य नहर दिसम्बर 1986 में बनकर तैयार हुई थी। 1 जनवरी 1987 को वी. पी.(विश्व नाथप्रताप) सिंह ने इसमें जल प्रवाहित किया।

IGNP नहर की कुल सिंचाई 30 प्रतिशत भाग लिफ्ट नहरों से तथा 70 प्रतिशत शाखाओं के माध्यम से होता है।

रावी - व्यास जल विवाद हेतु गठित इराड़ी आयोग(1966) के फैसले से राजस्थान को प्राप्त कुल 8.6 एम. ए. एफ. जल में से 7.59 एम. ए. एफ. जल का उपयोग IGNP के माध्यम से किय जायेगा।

IGNP के द्वारा राज्य के आठ जिलों - हनुमानगढ़, श्री गंगानगर, चूरू, बीकानेर, जोधपुर, नागौर, जैसलमेर एवं बाड़मेर में सिंचाई हो रही है या होगी। इनमें से सर्वाधिक कमाण्ड क्षेत्र क्रमशः जैसलमेर एवं बीकानेर जिलों का है। IGNP से 7 शाखाएं निकाली गयी है जो निम्न है -
क्र. स.लिफ्ट नहर का पुराना नामलिफ्ट नहर का नया नाम लाभान्वित जिले
1गंधेली(नोहर) साहवा लिफ्टचैधरी कुम्भाराम लिफ्ट नहर हनुमानगढ़, चुरू, झुंझुनू
2.बीकानेर - लुणकरणसर लिफ्टकंवरसेन लिफ्ट नहरश्री गंगानगर, बीकानेर
3.गजनेर लिफ्ट नहरपन्नालाल बारूपाल लिफ्ट नहर बीकानेर, नागौर
4.बांगड़सर लिफ्ट नहरभैरूदम चालनी वीर तेजाजी लिफ्ट नहर बीकानेर
5.कोलायत लिफ्ट नहरडा. करणी सिंह लिफ्ट नहरबीकानेर, जोधपुर
6. फलौदी लिफ्ट नहरगुरू जम्भेश्वर जलो उत्थान योजनाजोधपुर, बीकानेर, जैसलमेर
7.पोकरण लिफ्ट नहरजयनारायण व्यास लिफ्टजैसलमेर, जोधपुर
8. जोधपुर लिफ्ट नहर(170 किमी. + 30 किमी. तक पाईप लाईन)राजीवगांधी लिफ्ट नहरजोधपुर

तथ्य

बीकानेर - लुणकरणसर लिफ्ट नहर सबसे लम्बी बड़ी नहर है।

IGNPकी 9 शाखाएं है।

1. रावतसर(हनुमानगढ़)

यह IGNP की प्रथम शाखा है जो एक मात्र ऐसी शाखा है। जो नहर के बांयी ओर से निकलती है।

श्री गंगानगर

2. सुरतगढ़

3. अनूपगढ़

बीकानेर

4. पुगल

5. चारणवाला

6. दातौर

7. बिरसलपुर

जैसलमेर

8. शहीद बीरबल

9. सागरमल गोपा

IGNP की 4 उपशाखाएं है -

1. लीलवा

2. दीघा

मोहनगढ़ से निकाली गयी हैं।

3. बरकतुल्ला खां(गडरा रोड उपशाखा़)

सागरमल गोपा शाखा से निकाली गई है।

4. बाबा रामदेव उपशाखा

IGNP से हनुमानगढ़, श्री गंगानगर, बीकानेर, जैसलमेर, बाड़मेर, नागौर, चुरू, जोधपुर, झुझुनू को पेयजल उपलब्ध हो सकेगा। तथा 18.36 लाख हैक्टेयर सिंचाई योग्य क्षेत्र उपलब्ध हो सकेगा।

IGNP में पानी के नियमित बहाव के लिए निम्न उपाय है।

1. व्यास - सतलज नदी पर बांध

2. व्यास नदी पर पौंग बांध

3. रावी - व्यास नदियों के संगम पर पंजाब के माधोपुर नामक स्थान पर एक लिंक नहर का निर्माण।

गंधेली साहवा लिफ्ट नहर से जर्मनी के सहयोग से ‘आपणी योजना‘ बनाई गई है। इस योजना के प्रथम चरण में हनुमानगढ़, चुरू, और इसके द्वितीय चरण में चुरू व झुझुनू के कुछ गांवों में जलापुर्ति होगी।

IGNP की सूरतगढ़ व अनूपगढ़ शाखाओं पर 3 लघु विधुत ग्रह बनाये गये है। भविष्य में इस नहर को कांडला बन्दरगाह से जोड़ने की योजना है। जिससे यह भारत की राइन नदी बन जाएगी।

डा. सिचेन्द द्वारा आविष्कारित लिफ्ट ट्रांसलेटर यंत्र नहर के विभिन्न स्थानों पर लगा देने से इससे इतनी विधुत उत्पन्न की जा सकती है जिससे पूरे उत्तरी - पश्चिमी राजस्थान में नियमित विधुत की आपूर्ति हो सकती है।

2. गंगनहर

यह भारत की प्रथम नहर सिंचाई परियोजना है। बीकानेर के महाराजा गंगासिंह के प्रयासों से गंगनहर के निर्माण द्वारा सतलज नदी का पानी राजस्थान में लाने हेतु 4 दिसम्बर 1920 को बीकानेर, भावलपुर और पंजाब राज्यों के बीच सतलज नदी घाटी समझौता हुआ था।

गंगनहर की आधारशिला फिरोजपुर हैडबाक्स पर 5 सितम्बर 1921 को महाराजा गंगासिंह द्वारा रखी गई।

26 अक्टूबर 1927 को तत्कालीन वायसराय लार्ड इरविन ने श्री गंगानगर के शिवपुर हैड बाॅक्स पर उद्घाटन करते हैं। यह नहर सतलज नदी से पंजाब के फिरोजपुर के हुसैनीवाला से निकाली गई है। श्री गंगानगर के संखा गांव में यह राजस्थान में प्रवेश करती है। शिवपुर, श्रीगंगानगर, जोरावरपुर, पदमपुर, रायसिंह नगर, स्वरूपशहर, होती हुई यह अनूपगढ़ तक जाती है।

मुख्य नहर की लम्बाई 129 कि.मी. है।(112 कि.मी. पंजाब + 17 कि.मी. राजस्थान) फिरोजपुर से शिवपुर हैड तक है। नहर की वितरिकाओं की लम्बाई 1280 कि.मी. है। लक्ष्मीनारायण जी, लालगढ़, करणीजी, समीक्षा इसकी मुख्य शाखा है। नहर में पानी के नियमित बहाव और नहर के मरम्मत के समय इसे गंगनहर लिंक से जोड़ा गया है।यह लिंक नहर व हरियाणा में लोहागढ़ से निकाली गई है। और श्रीगंगानगर के साधुवाली गांव में गंगनहर से जोड़ा गया है।

31 मई 2000 को केन्द्रीय जल आयोग ने नहर के रख रखाव व मरम्मत हेतु आर्थिक सहायता प्रदान की है।

3. भरतपुर नहर

यह नहर पश्चिमी यमुना की आगरा नहर से निकाली गई है। भरतपुर नरेश ने सन् 1906 में इस नहर का निर्माण कार्य शुरू करवाया था जो 1963 - 64 में यह बनकर तैयार हुई थी। इसकी कुल लम्बाई 28 कि.मी.(16 उत्तर प्रदेश + 12 राजस्थान) है। इससे भी भरतपुर में जलापूर्ति होती है।

4. गुड़गांव नहर

यह नहर हरियाणा व राजस्थान की संयुक्त नहर है। इस नहर के निर्माण का मुख्य उद्देश्य मानसूनकाल में यमुना नदी के अतिरिक्त जल को उपयोग लाना है। 1966 मं इसका निर्माण कार्य शुरू हुआ एवं 1985 में पुरा हो गया। यह नहर यमुना नदी में उत्तरप्रदेश के औंखला से निकाली गई है। यह भरतपुर जिले की कामा तहसील के जुरेरा(जुटेरा) गांव में राजस्थान में प्रवेश करती है। इससे भरतपुर की कामा व डींग तहसील की जलापूर्ति होती है। इसकी कुल लम्बाई 58 कि.मी. है। आजकल इसे यमुना लिंक परियोजना कहते हैं।

5. भीखाभाई सागवाड़ा माही नहर

यह डुंगरपुर जिले में हैं इस परियोजना को 2002 में केन्द्रीय जल आयोग ने स्वीकृति प्रदान की। इसमें माही नदी पर साइफन का निर्माण कर यह नहर निकाली गई है। इससे डुंगरपुर जिले में लगभग 21000 हेक्टेयर में सिंचाई सुविधा उपलब्ध होगी।

6. जाखम परियोजना

यह परियोजना 1962 में प्रारम्भ की गई। यह परियोजना चित्तौड़गढ़ - प्रतापगढ़ मार्ग पर अनुपपुरा गांव में बनी हुई है। यह राजस्थान की सबसे ऊंचाई पर स्थित बांध है। इस परियोजना से प्रतापगढ़, चित्तौड़गढ़, बांसवाड़ा के आदिवासी कृषक लाभान्वित होते हैं। यह परियोजना आदिवासी क्षेत्रों के लिए लाभदायक सिद्ध हुई है। जल विधुत उत्पादन की दो इकाईयां है। 1968 में यह शुरू हुई 1986 में जल प्रवाहित किया गया पूर्णरूप से यह परियोजना 1997-98 में पूर्ण हुई है।

7. सिद्धमुख नोहर परियोजना

इसका नाम अब राजीव गांधी नोहर परियोजना है इसका शिलान्यास 5 अक्टुबर 1989 को राजीव गांधी ने भादरा के समीप भिरानी गांव से किया। रावी-व्यास नदियों के अतिरिक्त जल का उपयोग में लेना है, इसके लिए भाखड़ा मुख्य नहर से 275 कि.मी. लम्बी एक नहर निकाली गयी है।

इस परियोजना को आर्थिक सहायता यूरोपीय आर्थिक समुदाय से प्राप्त हुई है। इससे नोहर, भादरा(हनुमानगढ़), तारानगर, सहवा(चुरू) तहसिलों को लाभ मिल रहा है। इस परियोजना का 12 जुलाई 2002 को श्री मति सोनिया गांधी द्वारा लोकार्पण किया गया। इस परियोजना के लिए पानी भाखड़ा नांगल हैड वर्क से लाया गया है।

8. बीसलपुर परियोजना

यह परियोजना बनास नदी पर टोंक जिले के टोडारायसिंह कस्बे में है। यह पेयजल की परियोजना है। इसका प्रारम्भ 1988-89 में हुआ। यह राजस्थान की सबसे बड़ी पेयजल परियोजना है। इससे दो नहरें भी निकाली गयी है। इससे अजमेर, जयपुर, टोंक में जलापूर्ति होती है। इसे NABRD के RIDF से आर्थिक सहायता प्राप्त होती है।

9. नर्मदा नहर परियोजना

यह गुजरात, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान की संयुक्त परियोजना है। इस परियोजना में राजस्थान के लिए 0.5 एम. ए. फ.(मिलियन एकड़ फीट) निर्धारित की गई है। इस जल को लेने के लिए गुजरात के सरदार सरोवर बांध से नर्मदा नहर(458 कि.मी. गुजरात + 75 कि.मी. राजस्थान) निकाली गई है। यह नहर जालौर जिले की सांचैर तहसील के सीलू गांव में राजस्थान मं प्रवेश करती है। फरवरी 2008 को वसुंधरा राजे ने जल प्रवाहित किया। इस परियोजना में सिंचाई केवल फुव्वरा पद्धति से करने का प्रावधान है। जालौर व बाड़मेर की गुढ़ा मलानी तहसील लाभान्वित होती है।

10. ईसरदा परियोजना

बनास नदी के अतिरिक्त जल को लेने के लिए यह परियोजना सवाई माधोपुर के ईसरदा गांव में बनी हुई है। इससे सवाईमाधोपुर, टोंक, जयपुर की जलापूर्ति होती है।

11. लखवार बांध परियोजना

केन्द्रीय जल संसाधन मंत्री श्री नितिन गडकरी ने यमुना बेसिन क्षेत्र में 3966.51 करोड़ रुपये की लागत वाली बहुउद्देशीय लखवाड़ बांध परियोजना के निर्माण के लिए छह राज्यों के मुख्यमंत्रियों( उत्‍तर प्रदेश के मुख्‍यमंत्री श्री योगी आदित्‍यनाथ, राजस्‍थान की मुख्यमंत्री श्रीमती वसुन्‍धरा राजे, उत्‍तराखंड के मुख्यमंत्री श्री त्रिवेंद्र सिंह रावत, हरियाणा के मुख्यमंत्री श्री मनोहर लाल, दिल्‍ली के मुख्यमंत्री श्री अरविंद केजरीवाल और हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री जयराम ठाकुर) के साथ नई दिल्‍ली में एक समझौता ज्ञापन पर हस्‍ताक्षर किए। इस परियोजना के पूरा हो जाने पर इन सभी राज्यों में पानी की कमी की समस्या का समाधान होगा, क्योंकि इससे यमुना नदी में हर वर्ष दिसंबर से जून के सूखे मौसम में पानी के बहाव में सुधार आएगा। इस परियोजना को 1976 में योजना आयोग ने मंजूरी दी थी। दस साल बाद 1986 में पर्यावरणीय मंजूरी मिलने के बाद 1987 में जेपी समूह ने उत्तर प्रदेर्श ंसचाई विभाग के पर्यवेक्षण में 204 मीटर ऊंचे बांध का निर्माण शुरू किया गया। 1992 में जब लगभग 35 फीसदी काम पूरा हो गया तो जेपी समूह पैसा न मिलने को लेकर परियोजना से अलग हो गया। बाद में 2008 में केंद्र सरकार ने इसे राष्ट्रीय परियोजना घोषित किया, जिसके तहत 90 फीसद धन केंद्र सरकार खर्च करेगी और बाकी दस फीसदी राज्य करेंगे। लखवाड़ परियोजना के अंतर्गत उत्‍तराखंड में देहरादून जिले के लोहारी गांव के नजदीक यमुना नदी पर 204 मीटर ऊंचा कंक्रीट का बांध बनना है। परियोजना के तहत बनने वाली पूरी 300 मेगावाट बिजली उत्तराखंड को मिलेगी, जिस पर लगभग 1400 करोड़ रुपये खर्च होंगे। यह खर्च उत्तराखंड उठाएगा। परियोजना के निर्माण का कार्य उत्‍तराखंड जल विद्युत निगम लिमिटेड करेगा। दिल्ली को इससे पेयजल मिलेगा, जबकि अन्य राज्यों को सिंचाई के लिए पानी मिलेगा।

12. रेणुकाजी डैम परियोजना

दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और राजस्थान के मुख्यमंत्री 11 जनवरी 2018 को रेणुकाजी बहुद्देश्यीय डैम परियोजना के लिए समझौते पर हस्ताक्षर किये। डैम का निर्माण इन छह राज्यों में पेयजल आपूर्ति की जरूरतों को देखते हुए किया जा रहा है। समझौते पर हस्ताक्षर केंद्रीय जल स्नोत, नदी विकास और गंगा कायाकल्प मंत्री नितिन गडकरी की उपस्थिति में किया। डैम यमुना और उसकी दो सहायक नदियों गिरि और टोंस पर बनाया जाएगा। उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश इसमें शामिल हैं। परियोजना वर्ष 2008 में विचार में आई थी। इस पर आने वाले खर्च के बड़े हिस्से का वहन केंद्र सरकार करेगी, जबकि राज्यों को केवल 10 प्रतिशत देना होगा। सरकार ने एक बयान में कहा, ‘रेणुकाजी बांध की परिकल्पना हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले में गिरि नदी पर एक भंडारण परियोजना के रूप में की गई है। 148 मीटर ऊंचे पत्थर के बांध से 23 क्यूबिक मीटर प्रति सेकेंड के हिसाब से पानी दिल्ली और अन्य बेसिन राज्यों को दिया जा सकेगा। इस परियोजना में 40 मेगावाट बिजली भी पैदा होगी।’

अन्य परियोजनाएं

1. जवाई बांध

यह बांध लूनी नदी की सहायक जवाई नदी पर पाली के सुमेरपुर में बना हुआ है। इसका निर्माण जोधपुर के महाराजा उम्मेदसिंह ने 13 मई 1946 को शुरू करवाया, 1956 में इसका निर्माण कार्य पुरा हुआ।

पहले इस बांध को अंग्रेज इंजीनियर एडगर और फर्गुसन के निर्देशन में शुरू करवाया बाद में मोतीसिंह की देखरेख में बांध का कार्य पूर्ण हुआ। इसे मारवाड़ का ‘अमृत सरोवर‘ भी कहते हैं। इससे एक नहर और उसकी शाखाएं निकाली गयी हैं।

जवाई बांध में पानी की आवक कम होने पर इसे उदयपुर के कोटड़ा तहसील में निर्मित सेई परियोजना से जोड़ा गया है। 9 अगस्त 1977 को सेई का पानी पहली बार जवाई बांध में डाला गया इस बांध के जीर्णोद्धार का कार्य 4 अप्रैल 2003 को सोनिया गांधी ने शुरू किया।

2. मेजा बांध

यह बांध भीलवाड़ा के माण्डलगढ़ कस्बे में कोठारी नदी पर है। इससे भीलवाड़ा शहर को पेयजल की आपूर्ति होती है। मेजा बांध की पाल पर मेजा पार्क को ग्रीन माउण्ट कहते हैं। यह माउण्ट फुलों और सब्जियों के लिए प्रसिद्ध है।

3. पांचणा बांध

करौली जिले के गुड़ला गांव में बालू मिट्टी से निर्मित बांध है। इस बांध में भद्रावती, बरखेड़ा, अटा, माची, भैसावर पांच नदियां आकर गिरती है। इसलिए इसे पांचणा बांध कहते है। यह मिट्टी से निर्मित राजस्थान का सबसे बड़ा बांध है यह अमेरिका के आर्थिक संयोग से बनाया गया है। इससे करौली, सवाईमाधोपुर, बयाना(भरतपुर) में जलापूर्ति होती है।

4. मानसी वाॅकल परियोजना

यह राजस्थान सरकार व हिन्दुस्तान जिंक लिमिटेड की संयुक्त परियोजना है। इसमें 70 प्रतिशत जल का उपयोग उदयपुर व 30 प्रतिशत जल का उपयोग हिन्दुस्तान जिंक लिमिटेड करता है। इस परियोजना में 4.6 कि.मी. लम्बी सुरंग बनी हुई है। यह भारत व राजस्थान की सबसे बड़ी जल सुरंग है।

5. पार्वती परियोजना(आंगई बांध)

इस योजना में धौलपुर जिल में पार्वती नदी पर 1959 में एक बांध का निर्माण किया गया। इससे धौलपुर जिले में सिंचाई सुविधा उपलब्ध हो रही है।

6. ओराई सिंचाई परियोजना

इसमें चित्तौड़गढ़ जिले में भोपालपुरा गांव के पास ओराई नदी पर एक बांध का निर्माण किया गया। इस बांध से एक नहर निकाली गई है जिसकी लम्बाई 34 कि.मी. है। इस परियोजना से चित्तौड़गढ़ एवं भीलवाड़ा जिले में सिंचाई सुविधा प्राप्त हो रही है।

7. गम्भीरी योजना

इस बांध का निर्माण निम्बाहेड़ा(चित्तौड़गढ़) के पास गम्भीरी नदी पर 1956 में किया गया। यह मिट्टी से निर्मित बांध है। इस बांध से चित्तौड़गढ़ जिले को सिंचाई सुविधा उपलब्ध हो रही है।

8. इन्दिरा लिफ्ट सिंचाई परियोजना

यह करौली जिले की सबसे बड़ी सिंचाई परियोजना है। इसमें चम्बल नदी के पानी को कसेडु गांव(करौली) के पास 125 मीटर ऊंचा उठाकर करौली, बामनवास(सवाईमाधोपुर) एवम् बयाना(भरतपुर) में सिंचाई सुविधा प्रदान की गई।

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