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राजस्थान के भौतिक विभाग

जर्मन वैज्ञानिक अल्फ्रेड वेगनर (1912) के सिद्धांत के अनुसार पृथ्वी अपने निर्माण के प्रराम्भिक काल में एक विशाल भू-खण्ड पैंजिया तथा एक विशाल महासागर पैंथालासा के रूप में विभक्त था कलांन्तर में पैंजिया के दो टुकडे़ हुए उत्तरी भाग अंगारालैण्ड तथा दक्षिणी भाग गोडवानालैण्ड के नाम जाना जाने लगा। तथा इन दोनों भू-खण्डों के मध्य का सागरीय क्षेत्र टेथिस सागर कहलाता है। राजस्थान का पश्चिमी रेगिस्तानी क्षेत्र तथा उसमें स्थित खारे पानी की झीलें टेथिस सागर का अवशेष है। जबकि राजस्थान का मध्य पर्वतीय प्रदेश तथा दक्षिणी पठारी क्षेत्र गोडवानालैण्ड का अवशेष है।

भौतिक प्रदेशो की उत्पत्ति से संबंधित महत्वपूर्ण काल/युग

राजस्थान राज्य की भू-गर्भिक संरचना भारत के अन्य प्रदेशों की तुलना में विशिष्ट है, क्योंकि यहाँ एक ओर प्राचीनतम प्री-कैम्ब्रियन युग के शैलों से युक्त अरावली पर्वतमाला है तो दूसरी ओर अत्याधुनिक वायु द्वारा जमा की गई मृदा अरावली की पर्वत श्रेणियों में प्राचीन ग्रेनाइट और नीस के शैल हैं तथा उसी के साथ-साथ देहली और विन्ध्य-समूह के शैल। हाड़ौती का पठार, मालवा के पठार का ही एक भाग है, वहीं दूसरी ओर बनास, माही, चम्बल के बेसिन हैं। राजस्थान की भू-गर्भिक संरचना की प्रमुख विशेषता यह है कि यहाँ आर्कियन तथा प्री-केम्ब्रियन युग की संरचना साथ-साथ दृष्टिगत होती है।

राजस्थान की भू-गर्भिक संरचना में भौमकीय कालानुक्रम में परिवर्तन आए हैं, जो यहाँ की शैल संरचना से स्पष्ट होते हैं। यहाँ की भू-गर्भिक संरचना का वर्णन क्रमश: आद्य महाकल्प, पुराजीवी महाकल्प, प्राध्यजीवी महाकल्प एवं नवजीवी महाकल्प (भू-गर्भिक युगों) के रूप में किया जा सकता है।

काल/युगआयुभौतिक अवशेषों की उत्पत्ति
प्री-कैंब्रियन काल57 करोड़ से 480 करोड़ वर्ष पहलेअरावली पर्वत श्रेणी, देहली महासमूह की चट्टाने (रायलो श्रेणी (मकराना का संगमरमर), अलवर श्रेणी, अजबगढ़ श्रेणी)
कैंब्रियन काल50 करोड़ से 57 करोड़ वर्ष पहले
कार्बोनिफेरस काल28 करोड़ से 36 करोड़ वर्ष पहले
बाप बोल्डर्स बेड (जोधपुर), भादुरा बालुकाश्‍म
पर्मियन काल24 करोड़ से 28 करोड़ वर्ष पहले
ट्रियासिक काल20 करोड़ से 24 करोड़ वर्ष पहले
जुरेसिक काल14 करोड़ से 20 करोड़ वर्ष पहले
लाठी श्रेणी, नेशनल फॉसिल पार्क(जैसलमेर)
कीर्टेशियस काल6 करोड़ से 14 करोड़ वर्ष पहलेहाड़ौती का पठार
टर्शरी काल
(तृतीय कल्प)
20 लाख से 6 करोड़ वर्ष पहलेबाड़मेर और जैसलमेर के क्षेत्रों में तेल और प्राकृतिक गैस के अथाह भंडार
पलाना और कपूरडी के लिग्नाइट कोयले के भंडार, हिमालय
प्लीस्टोसीन युग11700 वर्ष से 25 लाख वर्ष पहलेप्लीस्टोसीन प्रारंभिक युग – पूर्वी मैदान
प्लीस्टोसीन उत्तर युग – थार का मरुस्थल
क्वाटरनरी काल
(चतुर्थ कल्प)
0 से 20 लाख वर्ष पहले

राजस्‍थान के भौतिक विभाग

राजस्थान को सामान्यतः चार भौतिक विभागों में बांटा जाता हैः-

  1. पश्चिमी मरूस्थली प्रदेश
  2. अरावली पर्वतीय प्रदेश
  3. पूर्वी मैदानी प्रदेश
  4. दक्षिणी पूर्वी पठारी भाग

1. पश्चिमी मरूस्थली प्रदेश

राजस्थान का अरावली श्रेणीयों के पश्चिम का क्षेत्र शुष्क एवं अर्द्धशुष्क मरूस्थली प्रदेश है। यह एक विशिष्ठ भौगोलिक प्रदेश है। जिसे भारत का विशाल मरूस्थल अथवा थार का मरूस्थल के नाम से जाना जाता है। थार का मरूस्थल विश्व का सर्वाधिक आबाद तथा वन वनस्पति वाला मरूस्थल है। ईश्वरी सिंह ने थार के मरूस्थल को रूक्ष क्षेत्र कहा है। राज्य के कुल क्षेत्रफल का 61 प्रतिश है। इस क्षेत्र में राज्य की 40 प्रतिशत जनसंख्या निवास करती है। प्राचिन काल में इस क्षेत्र से होकर सरस्वती नदीबहती थी। सरस्वती नदी के प्रवाह क्षेत्र के जैसलमेर जिले के चांदन गांव में चांदन नलकुप की स्थापना कि गई है। जिसे थार का घडा कहा जाता है।

इसका विस्तार बाड़मेर, जैसलमेर, बिकानेर, जोधपुर, पाली, जालोर, नागौर,सीकर, चुरू, झूझूनु, अनूपगढ़, फलौदी, जोधपुर ग्रामीण, बालोतरा, डीडवाना कुचामन, सांचौर, हनुमानगढ़ व गंगानगर जिलों में है। संपुर्ण पश्चिमी मरूस्थलिय क्षेत्र समान उच्चावच नहीं रखता अपीतु इसमें भिन्नता है। इसी भिन्नता के कारण इसको 4 उपप्रदेशों में विभक्त किया जाता है-

  1. शुष्क रेतिला अथवा मरूस्थलि प्रदेश
  2. लूनी- जवाई बेसीन
  3. शेखावाटी प्रदेश
  4. घग्घर का मैदान

1. शुष्क रेतीला अथवा मरूस्थली प्रदेश

यह वार्षिक वर्षा का औसत 25 सेमी. से कम है। इसमें जैसलमेर, बाड़मेर, बीकानेर, फलौदी, बालोतरा, एवं जोधपुर ग्रामीण और चुरू जिलों के पश्चिमी भाग सम्मलित है। इन प्रदेश में सर्वत्र बालुका - स्तुपों का विस्तार है।

पश्चिमी रेगीस्तान क्षेत्र के जैसलमेर जिले में सेवण घास के मैदान पाए जाते है। जो कि भूगर्भिय जल पट्टी के रूप में प्रसिद्ध है। जिसे लाठी सीरिज कहलाते है।

पश्चिमी रेगिस्तानी क्षेत्र के जैसलमेर जिले में लगभग 18 करोड़ वर्ष पुराने वृक्षों के अवशेष एवं जीवाश्म मिले है। जिन्हें  “अकाल वुड फाॅसिल्स पार्क” नाम दिया है। पश्चिमी रेगिस्तान क्षेत्र के जैसलमेर, बाड़मेर, बीकानेर जिलों में पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैसों के भंडार मिले है।

2. लुनी - जवाई बेसीन

यह एक अर्द्धशुष्क प्रदेश है। जिसमें लुनी व इसकी प्रमुख नदी जवाई एवं अन्य सहायक नदियां प्रवाहित होती है। इसका विस्तार पाली, जालौर, जौधपुर ग्रामीण, ब्‍यावर व नागौर जिले के दक्षिणी भाग में है। यह एक नदी निर्मीत मैदान है। जिसे लुनी बेसिन के नाम से जाना जाता है।

3. शेखावाटी प्रदेश

इसे बांगर प्रदेश के नाम से जाना जाता है। शेखावटी प्रदेश का विस्तार झुझुनू, सीकर, चुरू तथा डीडवाना कुचामन में है। इस प्रदेश में अनेक नमकीन पानी के गर्त(रन) हैं जिसमें डीडवाना, डेगाना, सुजानगढ़, तालछापर, परीहारा, कुचामन आदि प्रमुख है।

4. घग्घर का मैदान

गंगानगर हनुमानगढ़ जिलों का मैदानी क्षेत्र का निर्माण घग्घर के प्रवाह क्षेत्र के बाढ़ से हुआ है।

तथ्य

भारत का सबसे गर्म प्रदेश राजस्थान का पश्चिमी शुष्क प्रदेश है।

टीलों के बीच की निम्न भूमी में वर्षा का जल भरने से बनी अस्थाई झीलों को स्थानीय भाषा में टाट या रन कहा जाता है।

राष्ट्रीय कृषि आयोग द्वारा राजस्थान के 12 जिलों श्री गंगानगर, हनुमानगढ, बीकानेर, नागौर, चुरू, झुझुनू, जोधपुर, बाड़मेर, जैसलमेर, पाली, जालौर व सीकर को रेगिस्तानी घोषित किया।

मरूस्थलिय क्षेत्र में पवनों की दिशा के समान्तर बनने वाले बालूका स्तुपों को अनुर्देश्र्य बालूका, समकोण बनाने वाले बालूका स्तुपों को अनुप्रस्थ बालुका कहतें है।

  1. इर्ग:- सम्पूर्ण रेतीला मरूस्थल (जैसलमेर)
  2. हम्माद:- सम्पूर्ण पथरीला मरूस्थल (जोधपुर)
  3. रैंग:- रेतीला और पथरीला (मिश्रित मरूस्थल)
रेगिस्तानी क्षेत्र में बालूका स्तूपों के निम्न प्रकार पाये जाते है।
  1. अनुप्रस्थ:- पवन/वायु की दिषा में बनने वाले बालुका स्तूप (सीधे)
  2. अनुदैध्र्य :- आडे -तीरछे बनने वाले बालुका स्तूप
  3. बरखान :- रेत के अर्द्धचन्द्राकार बालुका स्तूप

2. अरावली पर्वतीय प्रदेश

राज्य के मध्य अरावली पर्वत माला स्थित है। यह विश्व की प्राचीनतम वलित पर्वत माला है। यह पर्वत श्रृंखला श्री केम्ब्रियन (पोलियोजोइक) युग की है। यह पर्वत श्रृखला दंिक्षण-पश्चिम से उतर-पूर्व की ओर है। इस पर्वत श्रृंखला की चैडाई व ऊंचाई दक्षिण -पश्चिम में अधिक है। जो धीरे -धीरे उत्तर-पूर्व में कम होती जाती है। यह दक्षिण -पश्चिम में गुजरात के पालनपुर से प्रारम्भ होकर उत्तर-पूर्व में दिल्ली तक लम्बी है। जबकि राजस्थान में यह श्रंृखला खेडब्रहमा (सिरोही) से खेतड़ी (नीम का थाना) तक 550 कि.मी. लम्बी है जो कुल पर्वत श्रृंखला का 80 प्रतिशत है।

अरावली पर्वत श्रृंखला राजस्थान को दो असमान भागों में बांटती है। अरावली पर्वतीय प्रदेश का विस्तार राज्य के सात जिलों सिरोही, उदयपुर, राजसमंद, अजमेर, जयपूर, दौसा और अलवर में। अरावली पर्वतमाला की औसत ऊँचाई समुद्र तल से 930 मीटर है।

राज्य के कुल क्षेत्रफल का 9.3 प्रतिशत है। इस क्षेत्र में राज्य की 10 प्रतिशत जनसंख्या निवास करती है।

अरावली पर्वतमाला को ऊँचाई के आधार पर तीन प्रमुख उप प्रदेशों में विभक्त किया गया है।

  1. दक्षिणी अरावली प्रदेश
  2. मध्यवर्ती अरावली प्रदेश
  3. उतरी - पूर्वी अरावली प्रदेश

1. दक्षिणी अरावली प्रदेश

इसमें सिरोही, उदयपुर, सलूम्‍बर, डूंगरपुर और राजसमंद सम्मिलित है। यह पुर्णतया पर्वतीय प्रदेश है इस प्रदेश में गुरूशिखर(1722 मी.) सिरोही जिले में मांउट आबु क्षेत्र में स्थित है जो राजस्थान का सर्वोच्च पर्वत शिखर है।

यहां की अन्य प्रमुख चोटियां निम्न है:-

सेर(सिरोही)-1597 मी. , देलवाडा(सिरोही)-1442 मी. , जरगा-1431 मी. , अचलगढ़- 1380 मी. , कुंम्भलगढ़(राजसमंद)-1224 मी.

प्रमुख दर्रे(नाल)ः- जीलवा कि नाल(पगल्या नाल)- यह मारवाड से मेवाड़ जाने का रास्ता है।

सोमेश्वर की नाल विकट तंग दर्रा,हाथी गढ़ा की नाल कुम्भलगढ़ दुर्ग इसी के पास बना है।

सरूपघाट, देसुरी की नाल(पाली) दिवेर एवं हल्दी घाटी दर्रा(राजसमंद) आदि प्रमुख है।

आबू पर्वत से सटा हुआ उडि़या पठार आबू से लगभग 160 मी. ऊँचा है। और गुरूशिखर खुख्य चोटी के नीचे स्थित है। जेम्स टाॅड ने गुरूशिखर को सन्तों का शिखर कहा जाता है। यह हिमालय और नीलगिरी के बीच सबसे ऊँची चोटी है।

दक्षिणी अरावली रेंज की चोटियाँ

गुरु शिखर (सिरोही) 1722 मीटर
सेर (सिरोही) 1597 मीटर
दिलवाड़ा (सिरोही) 1442 मीटर
जरगा (उदयपुर) 1431 मीटर
अचलगढ़ (सिरोही) 1380 मीटर
कुंभलगढ़ (राजसमंद) 1224 मीटर
धोनिया 1183 मीटर
हृषिकेश 1017 मीटर
कमलनाथ (उदयपुर) 1001 मीटर
सज्जनगढ़ (उदयपुर) 938 मीटर
लीलागढ़ 874 मीटर

2. मध्यवर्ती अरावली प्रदेश

यह मुख्यतयः अजमेर व ब्‍यावर जिलों में फेला है। इस क्षेत्र में पर्वत श्रेणीयों के साथ संकरी घाटियाँ और समतल स्थल भी स्थित है। अजमेर के दक्षिणी पश्चिम में तारागढ़(870 मी.) और पश्चिम में सर्पीलाकार पर्वत श्रेणीयां नाग पहाड़(795 मी.) कहलाती है।

प्रमुख दर्रे:- बर, परवेरियां, शिवपुर घाट, सुरा घाट, देबारी, झीलवाडा, कच्छवाली, पीपली, अनरिया आदि।

मध्य अरावली क्षेत्र की चोटियाँ

गोरमजी (ब्‍यावर) 934 मीटर
तारागढ़ (अजमेर) 870 मीटर
नाग प्रहार (अजमेर) 795 मीटर

3. उतरी - पुर्वी अरावली प्रदेश

इस क्षेत्र का विस्तार जयपुर, जयपुर ग्रामीण, नीम का थाना, कोटपुतली, खैरथल तिजारा, दौसा तथा अलवर जिले में है। इस क्षेत्र में अरावली की श्रेणीयां अनवरत न हो कर दुर - दुर हो जाती है। इस क्षेत्र में पहाड़ीयों की सामान्य ऊँचाई 450 से 700 मी. है। इस प्रदेश की प्रमुख चोटियां:- रघुनाथगढ़(सीकर)- 1055 मी. ,खोह(जयपुर)-920 मी. , भेराच(अलवर)-792 मी. , बरवाड़ा(जयपुर)-786 मी.।

उत्तर-पूर्वी अरावली क्षेत्र की चोटियाँ

रघुनाथगढ़ (सीकर) 1055 मीटर
खोह (जयपुर ग्रामीण) 920 मीटर
भैरच (अलवर) 792 मीटर
बड़वारा (जयपुर) 786 मीटर
बाबई (नीम का थाना) 780 मीटर
बिलाली (अलवर) 775 मीटर
मनोहरपुरा (जयपुर ग्रामीण) 747 मीटर
बैराठ (कोटपुतली) 704 मीटर
सरिस्का (अलवर) 677 मीटर
सिरावास (अलवर)651 मीटर

3. पूर्वी मैदानी भाग

पूर्वी मैदानी भाग अरावली पर्वत माला के पूर्व में स्थित है। राजस्थान प्रदेश का पूर्वी हिस्सा एक समतल मैदान के रूप में विस्तृत है। यह मैदान पश्चिम से पूर्व की 50 से.मी. की समवर्षा रेखा द्वारा विभाजित है। इस क्षेत्र में भरतपुर, अलवर, धौलपुर, करौली, सवाईमाधोपुर, जयुपर, दौसा, टोंक, गंगापुर सिटी, डीग, शाहपुरा, भीलवाडा तथा दक्षिण की ओर से चित्तौड़गढ़, डूंगरपुर, बांसवाडा और प्रतापगढ जिलों के मैदानी भाग सम्मिलित है। यह मैदान नदी बेसिन प्रदेश है जो गंगा व यमुना नदियों द्वारा निर्मित मैदान है। मैदान की दक्षिण-पूर्वी सीमा विन्धयन पठार द्वारा बनाई जाती है। इस मैदान के अन्तर्गत चम्बल बेसिन की निम्न भूमियाँ जैसे-बनास का मैदान और मध्य घाटी अथवा छप्पन का मैदान आदि सम्मिलित हैं। बनास का मैदान यद्यपि एक कांपीय भू-भाग है फिर भी एक समप्राय मैदान है। यह प्रदेश ‘गंगा-यमुना नदी बेसिन’प्रदेश है अर्थात् नदियों द्वारा जमा की गई मिट्टी से इस प्रदेश का निर्माण हुआ है। इस प्रदेश में कुओं द्वारा सिंचाई अधिक होती है। इस मैदानी प्रदेश के तीन उप प्रदेश है।

  1. बनास- बांणगंगा बेसीन
  2. चंम्बल बेसीन
  3. मध्य माही बेसीन

1. बनास- बांणगंगा बेसीन

बनास और इसकी सहायक नदियों द्वारा निर्मित यह एक विस्तृत मैदान है यह मैदान बनास और इसकी सहायक बाणगंगा, बेड़च, डेन, मानसी, सोडरा, खारी, भोसी, मोरेल आदि नदियों द्वारा निर्मीत यह एक विस्तृत मैदान है जिसकी ढाल पूर्व की और है।

2. चम्बल बेसीन

इसके अन्तर्गत कोटा, सवाईमाधोपुर, करौली तथा धौलपुर जिलों का क्षेत्र सम्मिलित है। कोटा का क्षेत्र हाड़ौती में सम्मिलित है किंतु यहां चम्बल का मैदानी क्षेत्र स्थित है। इस प्रदेश में सवाईमाधोपुर, करौली एवं धौलपुर में चम्बल के बीहड़ स्थित है। यह अत्यधिक कटा- फटा क्षेत्र है, इनके मध्य समतल क्षेत्र स्थ्ति है।

3. मध्य माही बेसीन या छप्पन का मैदान

इसका विस्तार सलूम्‍बर, डुंगरपुर, बांसवाडा और प्रतापगढ़ जिलों में है। माही मध्य प्रदेश से निकल कर इसी प्रदेश से गुजरती हुई खंभात कि खाडी में गिरती है। यह क्षेत्र वागड़ के नाम से पुकारा जाता है तथा प्रतापगढ़ व बांसवाड़ा के मध्य भाग में छप्पन ग्राम समुह स्थित है। इसलिए यह भू-भाग छप्पन के मैदान के नाम से भी जाना जाता है।

4. दक्षिण-पूर्व का पठारी भाग

राज्य के कुल क्षेत्रफल का 9.6 प्रतिशत है। इस क्षेत्र में राज्य की 11 प्रतिशत जनसंख्या निवास करती है। राजस्थान के इस क्षेत्र में राज्य के चार जिले कोटा, बूंदी, बांरा, झालावाड़ सम्मिलित है।इस पठारी भग की प्रमुख नदी चम्बल नदी है और इसकी सहायक नदियां पार्वती, कालीसिद्ध, परवन, निवाजइत्यादि भी इस पठारी भाग की नदीयां है। इस क्षेत्र में वर्षा का औसत 80 से 100 से.मी. वार्षिक है। राजस्थान का झालावाड़ जिला राज्य का सर्वाधिक वर्षा प्राप्त करने वाला जिला है और यह राज्य का एकमात्र अति आर्द्र जिला है। इस क्षेत्र में मध्यम काली मिट्टी की अधिकता है। जो कपास, मूंगफली के लिए अत्यन्त उपयोगी है। यह पठारी भाग अरावली और विध्यांचल पर्वत के बीच “सक्रान्ति प्रदेष” ( Transitional belt) है।

दक्षिणी-पूर्वी पठारी भाग को दो भागों में बांटा गया है।

  • हाडौती का पठार - कोटा, बूंदी, बांरा, झालावाड़
  • विन्ध्यन कगार भूमि - धौलपुर. करौली, सवाईमाधोपुर

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